Thursday 15 March 2007

हाथ में जो भी हैं लम्हात ....



वक़्त तो दामने दरिया कि लहर है समझो
जिन्दगी खाक से बढ़ कर है कुछ नहीं समझो
यह गुज़र जाएँ तो पलटेंगे कभी , नामुमकिन
हाथ में जो भी हैं लम्हात वही सच समझो .

नीलकंठ



2 comments:

Garv said...

Lovely

myso said...

So beautiful language

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