मेरी हसरतें बहुत हैं
मेरे हौसले बड़े हैं
सब पर पड़ा हुवा है
मजबूरियों का साया
जज़्बात की न पूछो
सपनें बहुत हैं मेरे
खाका निगाह में है
तस्वीर दे न पाया।
दिन की थकान लेकर
मग़रिब के घोंसले में
वोह थकी थकी शुआएँ
मेरा दर्द जानती हैं
शब् जिनकी सिसकियों में
सुबह बीती आँसुवों में
शबनम से तर वोह कलियाँ
मेरा हाल जानती हैं।
A few lines from my otherwise a longer poem
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