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Thursday, 15 March 2007

हाथ में जो भी हैं लम्हात ....



वक़्त तो दामने दरिया कि लहर है समझो
जिन्दगी खाक से बढ़ कर है कुछ नहीं समझो
यह गुज़र जाएँ तो पलटेंगे कभी , नामुमकिन
हाथ में जो भी हैं लम्हात वही सच समझो .

नीलकंठ



Monday, 12 March 2007

मर्यादा प्रणय की






हुस्न बदनाम ना हो जाये
फिकर है हम को
बद्नियत इश्क न हो जाये
फिकर है हम को
अपने दामन की सफेदी को
संभाले रखना
बे अदब प्यार न हो जाये
फिकर है हम को

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