मैं वियोगी प्यार के आंसू न पोंछो
वेदना की ये निशानी ढुलकने दो
ज़िन्दगी बेरास्ता हो जायेगी
तुम हमारी ब्यथा की आंधी न रोको ।
एक निश्चित क्रम सुबह और शाम का
लिए ज्यों ज्यों ज़िन्दगी ढलती रही
सजल मेघों की तरह भीगी हुयी
एक स्मृति है कि जो पलती रही ।
ये घुमड़ते मेघ जायेंगे कहॉ
बरसने दो बूँद बनकर वेदना
मुझे इन से प्रीत है अनुराग है
ये हमारी साधना हैं अर्चना ।
बाँध टूटा है द्रगों के धैर्य का
ये किसी की देन हैं इन को न टोको
जलधि से भी अधिक गहरायी लिए
पिघलते विश्वास की पीड़ा न रोको ।
3 comments:
How touching and pathetic?
So very beautiful and so touching also.
So nice
Post a Comment