बरसो बरसो मेघ धरा का कण कण छक जाए
मेरे उर की पीर चाहे भीगे चाहे भर आये।
प्यासों को दो नीर जले जो शीतल कर दो
प्रणयातुर नैनों की हर गति रसमय कर दो
भीगें तरु के पात मगन मन पल्लव डोलें
चातक होयें निहाल मोरैला जू भरि गाएँ।
ऐसा गायें बगिया का हर फूल झूम जाए।
पथराये हैं खेत पेड़ पौदे मुरझाये
सूख गया सर मन की मन में बात छुपाये
अब न यहाँ महफ़िल जमती गाने वालों की
सूख गयी है ज़ुबाँ तान भरने वालों की
तुम आओ वह भी आएं फिर महफ़िल जम जाए।
इन्तज़ार की घड़िआं हैं मुश्किल है छिन छिन
अब न तपाओ अधिक उत्तर आवो रिम झिम रिम
उर उमंगे अनुराग गुजरिया नाचे रुन झुन
ऐसी बहै बयार पायलिया बाजे छुम छुम
ऐसी बांधो समां हर कली बेसुध हो जाए।
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